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कुर्द कौन है और क्यों ये सीरिया-तुर्की टकराव की वजह बने


कुर्दो के इतिहास को अगर टटोला जाये तो इनकी जड़े प्राचीनतम मेसोपोटामिया सभ्यता में भी मिलती है। मगर पुख्ता तौर पर इनकी उपस्थिति 7वीं शताब्दी में दर्ज की गई जब कुर्दो ने मुस्लिम धर्म के सुन्नी सेक्ट को अपनाया। इनकी मुख्य भाषा पर्सियन और पश्तो है।

पहले विश्व युद्ध में ओटोमन साम्राज्य के बिखरने के बाद कई नये देशों का जन्म हुआ और कुर्द अलग-अलग देशो में वंट गए। वर्तमान में इनकी आवादी विश्व में लगभग 3.5 करोड़ है जो की टर्की, ईरान, इराक, सीरिया, अर्मेनिआ और अन्य यूरोपीय देशो में रहती है।

1923 में ओटोमन साम्राज्य के बाद इन पर सभी देशो में अत्याचार हुए है, यहाँ तक कि टर्की में इनकी भाषा बोलने पर जेल तक की सजा है।

कुर्दो की आवाज उठाने के लिए इन्ही में से समय-समय पर के नेता उभरे पर किसी को भी कोई सफलता न मिली। उन्ही में से एक नेता अब्दुल्लाह ऑकलन तुर्की सरकार को बातचीत की मेज तक लाये मगर प्रयास विफल रहे। इस विफलता के बाद ऑकलन ने 1984 में हथियार उठा लिए तब से अब तक लगभग 40 हजार कुर्दो की इस संघर्ष में जान जा चुकी है।

सीरिया में ऐसे ही संघर्ष हुए, सीरिया के एक राज्य में कुर्दो की सरकार का गठन भी हुआ मगर, ये प्रयास भी असफल रहा।

इराक में भी मुस्तफा वर्जिनि के नेतृत्व में पार्टी का गठन हुआ और यहां भी कुर्दों ने अलग देश के लिए संघर्ष किया।

देखा जाए तो 2012 तक कुर्दों का राजनीतिक दखल बहुत कम था पर 2012 में isis के जन्म के बाद इन्हें अमेरिका जैसे ताकतवर देशो का सहयोग मिला जिससे कुर्द isis से लड़े और जीते भी।

कुर्दो ने इराक में अपनी सरकार बनाई और 2017 में जनमत संग्रह कराया जिसका मकसद कुर्दिस्तान (अलग देश) पाना था। संग्रह का फैसला कुर्दो के पक्ष में आया मगर इराकी सरकार ने इस मामले को दबा दिया।

आज वर्तमान में जो पहले अपनी पहचान के लिए संघर्ष कर रहे थे, टर्की हमले के बाद पूरा विश्व उनके समर्थन में उतर आया जिसमे भारत भी शामिल है। हाल ही में सीरिया सरकार ने कुर्दों से समझौता कर लिया है और टर्की के खिलाफ आपसी सहयोग के साथ लड़ रहे है। इस संघर्ष में देखने वाली बात ये होगी क्या 10 दशको के बाद क्या कुर्दिस्तान अस्तित्व में आएगा, क्या कुर्दो को न्याय मिलेगा।

AUTHOR : Nirdesh Kudeshiya